धूप से मुझको

धूप से मुझको शिकायत तो नहीं है साहिल | मेरे हिस्से में मगर थोड़े से साए रखना ||   Dhoop se mujhko shikayat to nahi’n hai lekin Mere hisse me’n magar thode se saye rakhna….   دھوپ سے مجھکو شکایت تو نہیں ہے ساحل  میرے حصّے میں مگر تھوڈے...

हर इक हाथ में पत्थर है

हर इक हाथ में पत्थर है क्या किया जाये। ये आईने का मुक़द्दर है क्या किया जाये।। बना लिया है उसे मर्कज़-ए-नज़र मैंने। सरापा हुस्न का पैकर है क्या किया जाये।। वह चाहे जान भी ले ले मिरी तो है मंजू़र। मेरा भरोसा उसी पर है क्या किया जाये।। अगर वह चाहे भी इक पल तो जी नहीं सकता।...

वो क्या समझेगा

वो क्या समझेगा दरिया की रवानी | जो ‘साहिल’ तक अभी पहुंचा नहीं है || Woh kya samjhega dariya ki rawani Jo ‘Sahil’ tak abhi pahu’ncha nahi’n hai.. وو کیا سمجھیگا دریا کی روانی جو ‘ساحل’ تک ابھی پہنچا نہیں ہے...

अश्कों के तेज़ाब

अश्कों के तेज़ाब से सुनते हैं साहिल । पत्थर दिल भी मोम बनाया जा सकता है।। Ashkon ke tezaab se sunte hain sahil patthar dil bhi mom banaya jaa sakta hai… اشکوں کے تیزاب سے سنتے ہے ساحل پتھر دل بھی موم بنایا جا سکتا ہے...

मौज-ए-दरिया

मौज-ए-दरिया खुद तुझे साहिल तलक पहुँचाएगी | हौसलों की ज़ेहन में पतवार होना चाहिए || Mauj-e-dariya khud tujhe Sahil talak pahunchayegi Hauslo’n ki zahan me’n patwaar hona chahiye …. موج دریا خود تجھے ساحل تلک پہچاےنگی حوصلوں کی ذھن میں پتوار ہونا چاہئے...